लफ़्ज़ों में बयां ना हो सके वो
मर्तबा कुछ इस कदर बुलन्द हैं
इल्म से ज़िन्दगी संवारता जो
किरदार खुद उसका रोशन हैं
तालीम की मशाल थामे हुए
जहालत का अँधेरा मिटाता हैं
किताबों की दुनिया के साथ साथ
शागिर्द को खुद से रूबरू कराता हैं
मायूसी में इक उम्मीद जगाकर
निरंतर बढ़ना सिखलाता हैं
सबसे बेहतरीन शख़्सियत वो
अदब से जिन्हे पुकारा जाता हैं
गुरु, शिक्षक, उस्ताद, टीचर
ये अल्फ़ाज़ सभी कम लगते हैं
सारी इन्सानियत का रहबर वो
तहज़ीब खुद जिसका सरमाया हैं
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