“आवाज़: इक पहचान”

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She needs no introduction. Legendary singer Lata Mangeshkar has mesmerized the nation for more than seven decades and has sung in over a thousand Hindi films. My little poetic feel for Lata Ji on the behalf of her 85th birthday…

रेशम के धागे की तरह मुलायम
इक आवाज़ हैं जो
गूंज रही हैं सदियों से
कानो में जब पङती हैं
यूँ लगता हैं मानो
रौशनी में नहाई हुई
पूनम की एक रात
फरमाईश कर रही हैं, चाँद से
बस कुछ देर चाँदनी और ठहर जाए

सज़दे में झुकी पलकों की तरह गहरी
इक नदी हैं जो
बह रही हैं सदियों से
कलकल जब करती हैं
यूँ लगता हैं मानो
मौसिक़ी में डूबी हुई
ज़िन्दगी की एक शाम
सिफारिश कर रही हैं, लहरों से
बस कुछ देर सागर और मचल जाए

भोले भाले बच्चों की तरह मासूम
इक लता हैं जो
झूम रही हैं सदियों से
मन को जब छूती हैं
यूँ लगता हैं मानो
आसमां से उतरी हुई
फरिश्तों की एक जमात
नवाज़िश कर रही हैं, रूह पर
बस कुछ देर वक्त यूँही ठहर जाए

पहली बारिश की तरह ख़ुशनुमा
इक एहसास हैं जो
गा रही हैं सदियों से
दिल में जब उतरती हैं
यूँ लगता हैं मानो
सुर में भीगी हुई
नूर की एक बूंद
ग़ुज़ारिश कर रही हैं, सावन से
बस घटाए कुछ देर और बरस जाए
हाँ वोही मखमली आवाज़
जो खुद अपनी पहचान हैं

“इक रात सियाह रंग”

इक रात सियाह रंग
जो वादे से मुकर गयी
वो मिट गयी गुज़र गयी
कल अपने संग ले गयी

धूप मे नहाई है
फूल की हर पंखुड़ी
रात भर जो रोई थी
फिर ओस ने भिगोई है

नई…..सब मंजिले
नया…….सा कारवाँ
ज़िन्दगी तो बस हुई
बंजारों के हमनवाँ

हर सुबह ……एक नशा
खुद की ….. खबर नहीं
ना खुद का निशाँ रहा…

“अक्सर”

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हर शख़्स यहाँ एक जैसा नहीं होता
जो दिखता हैं अक्सर वैसा नहीं होता

डोर विश्वास की इक बार जो टूटे तो
जुड़ाव उसमे वो पहले जैसा नहीं होता

ख़्वाबों में अक्सर जो नज़र आता हैं मुझे
हक़ीक़त में वो क्यूँ कभी वैसा नहीं होता

ज़माने के खरीददार बस इतना समझ ले
हर चीज का मोल यहाँ पैसा नहीं होता

प्यार तो वो करते हैं पर उनमें लेकिन
जुनूं चाहतों का क्यूँ मुझ जैसा नहीं होता

यूँ तो रिश्ते कई हैं दुनिया में इरफ़ान
रिश्ता मगर कोई माँ जैसा नहीं होता

“हसरत”

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खुदको पाने की चाहत में
खुद ही से दूर होता गया
चन्द ख्वाबों की हसरत में
हक़ीक़त से दूर होता गया
जाने कितने अरमां जलाये
जलाकर हर दफ़ा फिर से बुझाये
जो ना बुझ सके वो सीने में दफ़नाये…

मुकम्मल होने की चाहत में
मुख़्तसर से दूर होता गया
चन्द वफ़ाओ की हसरत में
दिल ये मजबूर होता गया
जाने कितने अल्फ़ाज़ सजाये
सजाकर हर दफ़ा फिर से मिटाये
जो ना मिट सके वो साँसों में बसाये…

मंज़िल पाने की चाहत में
रास्तों से दूर होता गया
चन्द ख़्यालों की हसरत में
हक़ीक़त से दूर होता गया
जाने कितने एहसास जगाये
जगाकर हर दफ़ा फिर से सुलाये
जो ना सो पाये वो आँखों में छुपाये…

महताब पाने की चाहत में
सितारोँ से दूर होता गया
चन्द ख्वाबों की हसरत में
हक़ीक़त से दूर होता गया…

© रॉकशायर

हसरत – Desire
मुकम्मल – Complete
मुख़्तसर – Brief
महताब – Moonshine

नई शुरुआत

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मुख़्तसर सी ज़िन्दगी में, ना हो और मायूस तू
राहें अपनी खुद चुन ले, लगेंगे पर ख़्वाबों को यूँ
उम्मीदों के बादल कबसे, तक रहे हैं रास्ता तेरा
कुछ तो नई शुरुआत कर, ना हो और बरबाद तू

“सैलाब”

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उजड़ गई वो बस्तियाँ
डूब गई सब कश्तियाँ
पशु, पक्षी, और इन्सान
बह रहे यूँ निर्जीव समान
ज़मीन पर ग़ालिब हुई कुदरत
लगता हैं फिर सैलाब आ गया

हर तरफ पानी ही पानी
कायनात लग रही हैं फ़ानी
नदी, दरिया, और समंदर
बन गए हैं मौत का खंजर
इन्सां के लिए ज़ाहिर हुई इब्रत
लगता हैं फिर सैलाब आ गया

वबा फैली हैं चारों ओर
थम रहा साँसों का शोर
पेड़, जंगल, और पहाड़
बाक़ी बचा केवल उजाड़
आसमां से नाज़िल हुई आफ़त
लगता हैं फिर सैलाब आ गया

जिधर देखों लाशों के ढेर
कहीं सिर नहीं, तो नहीं कहीं पैर
झुग्गी, झोंपड़ी, और मकान
ग़रक़ हो गए खेत और दुकान
आदमी से ख़फ़ा हुई कुदरत
लगता हैं फिर सैलाब आ गया

“अभियंता”

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विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी का ये संगम
असाधारण कौशल का दृश्य विहंगम

असंभव नहीं कोई भी कार्य इसके लिए
समस्या का निदान करता सबके लिए

अनुसन्धान पथ पर निरंतर ये अग्रसर
राष्ट्रनिमार्ण में अपना जीवन निछावर

मानवता के लिए सदैव देता योगदान
सृजन मार्ग पर प्रशस्त हो उदीयमान

विकास के पहिये की तकनीक हैं जान
अभियंता ज्ञान की उत्कृष्ट हैं पहचान

“हिंदी”

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हिंद का रहने वाला हूँ, हिंदी से मुझे प्रीत हैं
निर्मलता की परिभाषा, यह मधुर संगीत हैं

शब्दों में प्रवाहित इसके, जीवन का रहस्य
विचारों की अभिव्यक्ति, सरलता का दृश्य

मातृभाषा की उन्नति में, राष्ट्र की उन्नति हैं
फिर क्यूँ आज दयनीय, हिंदी की स्थिति हैं

हिंद के कर्णधारों, निद्रा से अब उठ जाओ
हिंदी के मस्तक पर, फिर से मुकुट सजाओ

गौरव से इसके, साहित्य को पल्लवित करो
राष्ट्रभाषा हैं ये, सदैव इसका अभिनन्दन करो

उर्दू में गर बयां करू, हिंदी से मुझे इश्क़ हैं
तहज़ीब की ज़बान, अदब जिसका मुश्क़ हैं

“सदा-ए-ज़िन्दगी”

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ज़िन्दगी में हर कदम पर ख़ताए हैं बहुत
पर साथ मेरे वालदैन की दुआए हैं बहुत

इश्क़ में डूब जा मगर इतना तू याद रख
ऐतबार-ए-हुस्न में अक्सर सजाए हैं बहुत

ख़ुद से ही भागता रहता हैं वो शातिर
फितरत में खुद जिसकी जफ़ाए हैं बहुत

राह की तकलीफों से मंजिल ना बदल
ज़िस्म पर रूहानियत की वफ़ाए हैं बहुत

जो ना मिला उसका भी शुक्र अदा कर
परवरदिगार की तुझ पर अताए हैं बहुत

गुनाहों के साये से ना डर तू इरफ़ान
अब साथ तेरे ईमान की सदाए हैं बहुत

© RockShayar IrFaN

सदा – Voice
वालदैन – Parents
ऐतबार-ए-हुस्न – Trust of beauties
शातिर – Vicious
फितरत – Habit
जफ़ाए – Deception
रूहानियत – Spirituality
परवरदिगार – Lord

 

“तख़लीक़”

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रेंगते रहते हैं सैकड़ों ख़्याल
खुद से सरकशी करते हुए
ख़ामोशी के ज़िस्म पर
फ़तह हासिल करता हैं
बस वो ही एक ख़्याल
सबसे उम्दा, सबसे अफज़ल
दूर कहीं सांस लेती हैं एक तख़लीक़
कई रंग छलकते हैं दामन में जिसके
हयात के सफर की तहरीर समेटे
फिर बयां होता हैं वो सुनहरा दौर
नज़ाकती मफ़हूम का…
तैरने लगते हैं अधजगे अल्फ़ाज़
सरगोशी के बदन पर
नफ़्स से बगावत करते हुए
सबसे ज़ुदा, सबसे बेहतरीन
बस वो ही एक एहसास
शक्ल इख़्तियार करता हैं
फिर आँखे खोलती हैं दूर कहीं एक तख़लीक़
कई रंग महकते हैं तफ़सीर में जिसके
रूह के शऊर की तसवीर लपेटे
और बयां होता हैं उन यादोँ का दौर
महफूज़ हैं जिनमें नज़्म के क़तरे
वही नज़्म जो खुद एक तख़लीक़ हैं

© RockShayar

1. सरकशी – Contumacy
2. फ़तेह – Victory
3. अफज़ल – Better
4. तख़लीक़ – Creation
5. हयात – Life
6. तहरीर – Manuscript
7. नज़ाकती – Sensitive
8. मफ़हूम – Essence
9. सरगोशी – Whisper
10. नफ़्स – Self
11. इख़्तियार – Construct
12. तफ़सीर – Interpretation
13. शऊर – Etiquette
14. महफूज़ – Secure
15. नज़्म – Poem

“बातिल”

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बारूद के ढेर पर सज रही इक महफ़िल
सरताज़ बनकर जहाँ बैठा अब बातिल

शक़्ल-ओ-सूरत इन्सां सी लगे मगर
ईमान से कबका हो चुका वो ग़ाफ़िल

ताउम्र बस नफ़रत के शोले भड़काए
रहनुमा नहीं वो कोई, हैं इक बुज़दिल

ज़हन में भरा जिसने मज़हबी फ़ुतूर
वो ज़ाहिल अब कहलाता हैं फ़ाज़िल

सुन कभी मासूम ज़िंदगी की पुकार
मत हो गुनाहों के दलदल में शामिल

अब भी गर ना समझें आदमज़ाद तो
ख़ुदा का क़हर ही होगा यहाँ नाज़िल

“उस्ताद “

 

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लफ़्ज़ों में बयां ना हो सके वो
मर्तबा कुछ इस कदर बुलन्द हैं
इल्म से ज़िन्दगी संवारता जो
किरदार खुद उसका रोशन हैं
तालीम की मशाल थामे हुए
जहालत का अँधेरा मिटाता हैं
किताबों की दुनिया के साथ साथ
शागिर्द को खुद से रूबरू कराता हैं
मायूसी में इक उम्मीद जगाकर
निरंतर बढ़ना सिखलाता हैं
सबसे बेहतरीन शख़्सियत वो
अदब से जिन्हे पुकारा जाता हैं
गुरु, शिक्षक, उस्ताद, टीचर
ये अल्फ़ाज़ सभी कम लगते हैं
सारी इन्सानियत का रहबर वो
तहज़ीब खुद जिसका सरमाया हैं

© RockShayar

“ख़ुशबू का वो झोंका”

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ख़ुशबू का वो झोंका
कल साँझ ढले
साँसों की डोर थामे हुए
हौले हौले से यूँ
उतर गया इस रूह में
ना कोई शोर हुआ
ना कोई बेचैनी थी
बस इक नील समंदर
जम सा गया मुझमें कहीं…
एहसास का वो नूर
कल रात ढले
पलकों की डोर थामे हुए
धीमे धीमे से यूँ
उतर गया इन आँखों में
ना कोई ख़्वाब टूटा
ना कोई बेदारी थी
बस इक सर्द बवंडर
थम सा गया मुझमें कहीं…

© RockShayar

“मैं अब बदलने लगा हूँ”

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तन्हा राहों पर बेफ़िक्र होकर चलने लगा हूँ
वक्त के साथ साथ मैं अब बदलने लगा हूँ

पिघलाकर ज़िस्म की सब बेजा ख़्वाहिशें
रूह की तपिश में धीमे धीमे जलने लगा हूँ

मायूसी का साया कहीं नज़र आता नहीं
हालात के मुताबिक अब जो ढलने लगा हूँ

तसव्वुर की स्याही में यूँ कलम डुबोकर
कागज़ पर सब्ज़ एहसास उगलने लगा हूँ

सुनकर वज़ूद की वो आख़िरी गुज़ारिश
बर्बाद होते होते फिर से सम्भलने लगा हूँ

दर्द से ख़ुद को ज़ुदा करने की ख़्वाहिश में
ज़िन्दगी से बाहें खोलें अब मिलने लगा हूँ