शाह का रुतबा रखते है
दर्द का ख़ुत्बा पढ़ते है
कुछ लोग ऐसे भी है यहाँ
जो मौत का तज़ुर्बा रखते है ।।
ख़ुत्बा – धर्मोपदेश
शाह का रुतबा रखते है
दर्द का ख़ुत्बा पढ़ते है
कुछ लोग ऐसे भी है यहाँ
जो मौत का तज़ुर्बा रखते है ।।
ख़ुत्बा – धर्मोपदेश
हक़ीक़त से नही, हाँ सपनो से डर लगता है
ग़ैरो से नही, फ़क़त अपनो से डर लगता है ।।
हाथों का तकिया, ज़ुल्फों की चादर
आँखें है तेरी, जैसे कोई सागर ।।
लग्ज़री कारों का, है जिसके पास रहनुमा रहबर
कैब में क्वालिटी सर्विस, जी हाँ नम्बर वन उबर
हो सबका ड्राइवर पर्सनल, यही है इसका नारा
रेटिंग एज पर जर्नी, जो भी दो इसको सितारा
फटाक से बुक, राइड लेटर का कोई लफड़ा नहीं
पेटीएम से लिंक्ड है, पैसों का कोई झगड़ा नहीं
सफ़र को फिर कूल बनाये, ऐसी की ठंडी फुहार
ट्रैवलिंग से मन ना भरे, बैठ लिए चाहे सौ बार
रेस्पोंस है फ़ास्ट ट्रैक, एक्सपीरियंस है गुड ट्रैक
उम्मीदों का गीत जैसे, रॉकिंग कोई बॉलीवुड ट्रैक
नित नए ऑफर्स, विद अमेजिंग खुशनुमा खबर
कैब में क्वालिटी सर्विस, जी हाँ नम्बर वन उबर ।।
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Irfan Ali Khan
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याद आ रही है तुम्हारी
आज बहुत ज्यादा मुझे
शायद इसलिए आसमां में
काले घने बादल नज़र आ रहे है
मगर बारिश का कहीं भी
नामो निशान तक नहीं
हाँ कुछ बूंदे जरूर छलक आती है
जब तन्हाई की शिद्दत गुज़र जाती है
सदियों से प्यासा ये मन मेरा
इक तेरी ही आस लिए बैठा है बस
रात रात भर तुम्हें सोचता रहता हूँ
ख़्वाबों का वो पता पूछता रहता हूँ
हर वो लफ़्ज़ मुझे प्यारा लगता है
नाम जिसमे कि तुम्हारा लगता है
हिचकियाँ आती रहती है मुझे
अक्सर पानी पीने के बाद भी
बेचैनियां सताती रहती है हर पल मुझे
तेरे ना होने के बाद भी
तुम्हें जज़्बाती करना
कोई इरादा नहीं है मेरा
मैं तो बस इतना कहना चाह रहा हूँ
कि याद आ रही है तुम्हारी
आज बहुत ज्यादा मुझे ।।
जो भी मैं लिखना चाहता हूँ
जो भी मैं कहना चाहता हूँ
हर दफ़ा मुझको रोकता है कोई
सौ दफ़ा मुझको टोकता है कोई
मुझ में ही छुपा है शायद डर मेरा
अलहदा करने से हाँ रोकता है वोही
आज़ाद उड़ने पर हाँ टोकता है वोही
ना कोई दुनिया ना कोई ज़माना यहाँ
ख़्वाब देखने से मुझको हाँ रोकता है वोही
ताकत से नहीं वो छल से वार करता है
आज से नहीं वो कल से प्यार करता है
खुद से ज्यादा औरों को पहचानता है
खुद से ज्यादा औरों की वो मानता है
जो भी मैं बुनना चाहता हूँ
जो भी मैं चुनना चाहता हूँ
हर दफ़ा मुझको रोकता है कोई
कई दफ़ा मुझको टोकता है कोई
मुझ में ही छुपा है शायद डर मेरा
अलहदा करने से हाँ रोकता है वोही
आज़ाद बहने पर हाँ टोकता है वोही
ना कोई कहानी ना कोई फसाना यहाँ
ख़याल सेकने से मुझको हाँ रोकता है वोही ।।
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नाम है जिसका माय एफएम यारों
गीतों की महफ़िल रोज सजाता है वो
दिन की शुरुआत सलाम जयपुर के साथ
बाद उसके सिक्सटीन ऑलवेज की बात
दिल चाहता जिसे ऑन करता है वही शो
किस्से ज़िंदगी के एक्सप्रेस करता है वो
शाम को हैप्पी बना दे पलक झपकते जो
ख़याल चाँदनी रातों के गुनगुनाता है वो
पिंकसिटी की जान कहे ये खुद ‘इरफ़ान’
प्रीत के सब रंग गुलाबी महकाता है वो ।।
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आँखों ही आँखों में आँखों ने आँखों की वो आँखें पढ़ ली
बातों ही बातों में दिल ने दिल की अनकही बातें पढ़ ली
रूह से रूह का जब तआरूफ़ हुआ यूँ हौले हौले
सीने में उठ रहे समंदर ने मचलती हुई सब साँसें पढ़ ली
ये पहली नज़र ही है अक्सर चैन लूट जाया करती है
नज़र ही नज़र में नज़र ने नज़र की बेनज़ीर बातें पढ़ ली
कमाल बख्शा है खुदा ने आँखों को कुछ इस क़दर
दिल के दरमियानी हिस्से पर लिखी मुलाकातें पढ़ ली
ये निगाहों की ज़ुबाँ है फ़क़त दिल्लगी ना कोई ‘इरफ़ान’
नींद के साये में रात भर जगी, अधजगी वो रातें पढ़ ली ।।
कुछ वक्त़ तो मेरे साथ भी गुज़ारो कभी
कोई लम्हा तो मेरे साथ भी निहारो कभी
एक अरसे से दिल की आरज़ू है यही
संग तेरे बस जीने की आरज़ू है कहीं
तन्हाई के कागज़ पर तेरी तस्वीर बनाई है
अल्फ़ाज़ के आँगन पर मैंने तक़दीर सजाई है
तुमसे ही सीखा है मैंने खुद से प्यार करना
तुमसे ही जाना है मैंने खुद पे ऐतबार करना
मिलो कभी तो बताऊँगा चाहत क्यूँ है इतनी
ख़याल से ही दिल को मेरे राहत क्यूँ है इतनी
कुछ वक्त़ तो मेरे साथ भी गुज़ारो कभी
कोई लम्हा तो मेरे साथ भी सँवारो कभी ।।
ज़ुदा होकर भी कभी ज़ुदा नही लगती हो तुम
नैनो को हर रोज यूँही नैनो से ठगती हो तुम
रातें तेरी सौगातें तेरी इश्क़ में डूबी बातें तेरी
इबादत रूहानी लगे मख़मली मुलाकातें तेरी
फ़ासले हो जितने भी दरमियां कम लगते है
काफ़िले हो जितने भी अलहदा हम लगते है
मुझमें मेरा कुछ नहीं जो है सब कुछ तेरा है
मुझमें तुझमें फर्क़ नहीं देख जिसे सब हैरां है
बेक़रार भी होता है ये दिल सुकूं भी खोता है
एहसास तेरे होने का नहीं होकर भी होता है
दूर होकर भी कभी यूँ दूर नहीं लगती हो तुम
नींदों में हर पल यूँही ख़्वावों में जगती हो तुम ।।
ज़िन्दगी में जब जब, फेल होता है कोई प्यार
याद आये तभी वो, सबसे पहले साड्डा यार
दोस्ती का ये रिश्ता, यूँ तो है टोटली डिफरेंट
फाॅर्मेलिटीज है जीरो, एंड इमोशन सौ परसेंट
पॉकिट हो चाहे खाली, आँखों में सपने हजार
प्रवचन हो चाहे गाली, बातों में अपने ही यार
नो शुक्रिया नो हिसाब किताब, नो थैंक वैंक
दोस्तों की दोस्ती का, है कुछ अलग ही रैंक
हो वो एग्जाम्स की तैयारी, या कटने की बारी
यार अपने है ना जी, कर्मो पर फेर देंगे बुहारी
ना इनमें कोई राज़दारी, ना इनमें कोई दुनियादारी
फंडा ऑनली देट के, नेवर नकद ऑलवेज उधारी
ऑवरऑल खुल के बोल, है टोटल निष्कर्ष यही
खोखले रिश्तों से बढ़कर, रिश्ता है उत्कर्ष यही
ज़िन्दगी में जब भी, दुःखी हुआ कोई बेशुमार
याद आये तभी वो, सबसे पहले साड्डा यार ।।
This is for you…Just feel it….
ठहर गई थी नज़रें मेरी
उस रोज वहीं पर कहीं
देखा था जब मैंने तुम्हें
पहली नज़र यूँही कहीं
ना जाने क्या हुआ था उस वक़्त मुझे
एक अजीब सी कशिश थी
तुम्हारी आँखों में
तुम्हारी बातों में
तुम्हारे अंदाज़ में
तुम्हारे हर इक अल्फ़ाज़ में
नज़्म पढ़ रही थी तुम
और मैं के
तुम्हें पढ़ने की कोशिश में लगा हुआ था
तुम्हारी पेशानी पर ख़याल रखकर
आँखों में जब उतरा
तो ये जाना कि
ये आँखें
क्यूँ है आख़िर ? इतनी गहरी
किसी झील की तरह
उन्ही आँखों के दरमियान
कुछ ख़्वाब मिले थे
कुछ अश्क़
और मख़मली यादों के कुछ सब्ज़ ज़जीरे
ज्योंही मैंने एक ज़जीरे पर पाँव रखा
छलकते हुए नूर की
मचलती हुई बूंद की तरह
पलकों से रिसता हुआ
सीधे लबों पर आकर ठहरा
सुर्ख़ लबों को पढ़ते पढ़ते
जाने कब एक लफ़्ज़ बन गया मैं
वो एहसास इस क़दर रूमानी था
के जैसे हौले हौले
दिल में उतर रही हो
इश्क़ में डूबी हुई ग़ज़ल कोई
जब तुमने नज़्म पूरी पढ़ ली
और फिर वहाँ से ओंझल हो गई
तब कहीं होश आया मुझे
के नज़्म बहुत अच्छी थी
सब लोग तालियां बजा रहे है
मगर मेरे हाथों की तालियां
कुछ अलग ही आवाज़ कर रही थी
शायद नज़रों की बैचैनी
हथेलियों में उतर आई थी कहीं
तारीफ करे जा रहे थे सब
तुम्हारी उस नज़्म की
मगर वो जो नज़्म मेरी आँखों ने पढ़ी थी
वो कोरी नज़्म नही थी
एक ज़िंदा एहसास था वो
जो कुछ देर के लिए आया
और मुझे ज़िंदा कर गया ।।
चलो आख़िर तुमने ये इक़रार तो किया
के तुम्हें भी कभी मोहब्बत रही थी मुझसे
उस शुरुआती दौर में
जब अल्फ़ाज़ थे कम
और जज़्बात थे ज्यादा
भले ही उस दौर को
आज इक अरसा हो गया है
मगर मेरे लिए तो
आज भी वो दौर
आज ही लगता है
जब मैं तुम्हारे लिए यूँ दीवाना था
जैसे बरसते मौसम का आवारा बादल
तुमसे नाराज नही हूँ
तुम्हें अपनी जान मानता हूँ
तुम्हारी मजबूरी समझता हूँ
खुद से तुम्हें ज्यादा जानता हूँ
फख़्र है अपनी मोहब्बत पर मुझे
ये जानकर कि
मोहब्बत है तुम्हें
मुझसे ज्यादा
मेरे मोहब्बत करने के अंदाज़ से
अब और क्या चाहिए
इतना काफ़ी है
मेरे जीने के लिए ।।
तमाम शब मैं तुझको निहारता ही रहा
और जिस्म में ये रूह उतारता ही रहा
कुछ अनकहे सवाल थे मेरी निगाहों में
कुछ अनछुए जवाब थे तेरी निगाहों में
चेहरे पर था शर्मो हया का पहरा घना
क़तरा क़तरा तुझमें होता रहा मैं फ़ना
संदली साँसों की लौ, रात भर जलाती रही मुझे
मख़मली बाहों की गिरह, पास बुलाती रही मुझे
दिल था जो मेरा, वो है अब कहीं तेरे सीने में
शामिल हुआ फिर से तू, अब कहीं मेरे जीने में
हाथों की लकीरों में हमने, इक दूजे को तलाशा है
फितूर ना कोई यूँही फ़क़त, मोहब्बत बेतहाशा है
तमाम शब मैं तुझको निहारता ही रहा
और जिस्म में ये रूह उतारता ही रहा ।।
बंजर हो गई, ये ज़िन्दगी
ना तू आती है, ना बारिश ।।
दाँतों का ये करे इलाज, पेशेंट्स को है इन पर नाज़
जयपुर यूथ डाॅक्टर्स में, होती इनकी गिनती आज
कैरीज हुई वो जैसे ही, पङ गई सब दाढ़े काली
आकर हमने तो इनके ही, क्लिनिक में पनाह ली
शुरु किया माउथ मिरर से, चेकअप का आगाज़
एक्स रे से जाना फिर, टूथ का डीप रूट मिजाज़
इंफ्लामेशन या इंफेक्शन, कैविटी या सेंसिटिविटी
डेंटल चेयर पर हमेशा, दिखाई अपनी कैपेबिलिटी
इनसाइजर हो कैनाइन, मोलर या के विजडम टूथ
स्केलिंग ब्लीचिंग फिलिंग, दाँत हुए एकदम स्मूथ
मेजरमेंट एक्सट्रेक्शन इम्प्लांट, या जी पी पॉइंट्स
ऑर्थोडाॅन्टिक्स में मिले इन्हें, सौ में से सौ पाॅइंट्स
रूट कैनाल ट्रीटमेंट में तो, इनका कोई जवाब नही
नॉलेज है प्रेक्टिकल बहुत, रिकॉर्ड कोई खराब नही
सिटी के डेंटिस्ट में, इमेज जिसने अपनी बनाली
क्वालिटी ट्रीटमेंट करे जो, वो है डाॅक्टर मनाली ।।
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खुद में खुद को पाने की
नया कुछ कर जाने की
वादे वो सब निभाने की
आज़ादी से जी पाने की
जंग है ये अस्तित्व की
अधजले व्यक्तित्व की
जगत से लड़ते हुए उन
विचारो के अस्तित्व की
जंग है ये अस्तित्व की
गुमशुदा व्यक्तित्व की
बंधन से जो मुक्त हुआ
मंथन से वो युक्त हुआ
खुद पर हो यक़ीं इतना
मंदन से वो मुक्त हुआ
गिर के हाँ उठ पाने की
मर के ना मर जाने की
कर के कुछ दिखाने की
जंग है ये अस्तित्व की
अधजले व्यक्तित्व की
दुनिया से लड़ते हुए उन
हौसलो के अस्तित्व की
जंग है ये अस्तित्व की
अलहदा व्यक्तित्व की ।।
रक्त की प्यास ये रक्त से बुझेगी हाँ
वक़्त की आस ये रक्त से मिटेगी हाँ
वज्र के प्रहार से दुश्मन को आघात कर
वज्र की प्यास ये रक्त से बुझेगी हाँ
ना कोई कमजोर यहाँ ना कोई दुर्बल यहाँ
शौर्य की तलाश ये रक्त से थमेगी हाँ
ज्वाला प्रतिशोध की भस्म करे सब कुछ
रूह की प्यास ये रक्त से बुझेगी हाँ
बस इतना स्मरण रहे ‘इरफ़ान’ तुझे सदा
वक़्त की प्यास ये रक्त से बुझेगी हाँ ।।
मुझमें मुझसे ज्यादा कहीं अब तू रहता है
और मोहब्बत नही है फिर भी ये कहता है
यूँही कोई इत्तेफाक तो नही है मिलना हमारा
बंजर के उस आगोश में फिर खिलना हमारा
जानकर भी अनजान बनना कोई तुमसे सीखे
ख़ामोश सा मेहरबान बनना कोई तुमसे सीखे
यूँ तो सदियों से सीने में दर्दो ग़म छुपाए बैठी हो
और हर दफ़ा मुझको ही तुम ग़मज़दा कहती हो
मेरे इश्क़ से ज्यादा मेरी दीवानगी से डरती हो तुम
आइने के सामने हर रोज ये इक़रार करती हो तुम
किसी दिन तो होगा शायद ये एहसास भी तुम्हें
अपने शैदाई को खोने का वो एहसास भी तुम्हें
मुझमें मुझसे ज्यादा कहीं अब तू रहता है
और मोहब्बत नही है फिर भी ये कहता है ।।
#RockShayar
तुम्हारा गिफ्ट किया हुआ वो पेन
स्याही खत्म हो गई है अब जिसकी
मैं फिर भी हर रोज
डायरी के पिछले पन्नों पर
लिखता हूँ इससे कुछ ऐसा
जिसे सिर्फ तुम और मैं ही पढ़ सकते है
और कोई दूसरा नही
हर्फ़ की जगह कुछ उभरे उभरे एहसास होते है
छूने से जिनकी पहचान मालूम हो
उसी पेन से मैंने इक नज़्म भी लिखी है
ज़िक्र है जिसमें तुम्हारी आँखों का
वही कत्थई आँखें जिनमें अक्सर
मैं खुद को तलाशा करता था
मोहब्बत में डूबी हुई एक ग़ज़ल
जिसके सारे रदीफ़ और काफ़िये
तुम्हारे नाम से खुद को जोङते रहते है
वैसे तो अमूमन स्याही से लिखी गई इबारत
धुल जाया करती है बारिश में
मगर ना जाने ये कैसी लिखावट है
तेरे नक़्श की मेरे अक्स पर
अरसे बाद भी वैसे ही उभरी हुई है
जैसे बरसों पहले थी
कई सावन आकर गुज़र गए
हर बार इसका रंग
पहले से ज्यादा गाढ़ा हो जाता है
तुम्हारा गिफ्ट किया हुआ वो पेन
स्याही खत्म हो गई है अब जिसकी
मैं फिर भी हर रोज
डायरी के पिछले पन्नों पर
लिखता हूँ इससे कुछ ऐसा
जिसे सिर्फ तुम और मैं ही पढ़ सकते है, और कोई दूसरा नही ।।
उफनती लहरों पर अपना घर बना ले
खुद को हर रोज खुद से बेहतर बना ले
तूफान आकर गिरे खुद कदमों में तेरे
शख़्सियत तू अपनी इस क़दर बना ले
खुद को तलाश तू, ना मिले जब तक तू
अपने लक्ष्य को ही अपनी नज़र बना ले
दंग रह जाए खुद, मुश्किलों के भँवर सभी
हर मुश्किल को तू अपना हमसफ़र बना ले
ख़्वाब देखा है तो उसे पूरा कर ‘इरफ़ान’
सपनो के आसमां में उम्मीदो के घर बना ले ।।
सुबह सुबह हो गई सुबह
उठ जाओ हो गई सुबह
सूरज चाचू आये है देखो
गिफ्ट कित्ते लाये है देखो
छत पर पचरंगी मोहल्ले
रौशनी के सतरंगी छल्ले
धूप कर रही अठखेलियाँ
ज़िंदगी से पूछे पहेलियाँ
चंदामामा तो जी रेस्ट पर
ख़यालो के ऐवरेस्ट पर
सुबह सुबह हो गई सुबह
उठ जाओ रे हो गई सुबह ।।
In every 40 seconds a life is lost through suicide (Worldwide as per WHO data). In India every day 3 lives lost due to suicide.
This is my poetic tribute for them…
Remember, exams are just one small milestone in life, not life itself.
खुली हवा में, चहकती सुबह में
ख़्वाबों के, ख़्वाहिशों के जहां में
उड़ने दो हमें भी, उड़ने दो हमें भी
आसमां ये ज़मीं, सितारों की नदी
दिल की आवाज़ है, सच्ची जो कि
सुनने दो हमें भी, सुनने दो हमें भी
आज़ाद बहने दो, यूँ आज़ाद रहने दो
आज़ादी से अपनी, हर बात कहने दो
ना कोई बंधन रहे, ना कोई तनाव रहे
सपनो के गाँव में, मन ये धूप छाँव सहे
खुली फ़िज़ा में, महकती सुबह में
उम्मीदों के, इरादों के बाग़बां में
रहने दो हमें भी, रहने दो हमें भी
रास्ता ये कभी, विचारो की नदी
दिल की आवाज़ है, सच्ची जो कि
बहने दो हमें भी, बहने दो हमें भी । ।
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Irfan Ali Khan
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रेत के कदम बनाकर, पानी पर चलना है तुझे
घी के लिहाफ ओढ़कर, आग में जलना है तुझे
नामुमकिन कुछ भी नहीं, बस इतना तू याद रख
बूंदों से अल्फ़ाज़ चुराकर, हवाओं पर लिखना है तुझे
मुश्किलों से मंज़िल ना बदल, मनचला है ये दिल ना बदल
तक़दीर हो चाहे रूठी तुझसे, सफ़र सपना साहिल ना बदल
राह के सब कंकर हटाकर, नदी बन बहना है तुझे
खुद अपना संगीत सजाकर, सितार में ढलना है तुझे
नामुमकिन कुछ भी नहीं, बस इतना तू याद रख
बूंदों से अल्फ़ाज़ चुराकर, घटाओं पर लिखना है तुझे ।।
#RockShayar I. A. Khan
Happywala birthday to dear Ashu
Jhappiwala birthday from alien sipu…
RockShayar hu main magar Real rock hai tu
Surprise se hardam karta Mujhe shock hai tu
Kabhi alien kabhi sipu kabhi rocku
Ab aur kya kahu sadda jigri dost hai tu…
“Always Inspire Always Admire
Crazy Rock Dude like that fire”
मुझसे मुझको अक्सर, मिलवाता है वो
हर दिन नया कुछ बेहतर, लिखवाता है वो
जब कभी मैं लङखङाया, जब कभी मैं फङफङाया
हाँ इक मुझमें मेरे होने का, यक़ीं दिलवाता है वो
वैसे तो मैं लिखता आया, अल्फ़ाज मेरे सब ज़ाविदाँ है
सब रिश्तों से बढ़कर रिश्ता, दोस्त साड्डा अलहदा है ।
मिले थे जब जख़्म कई, मरहम उसने ही लगाया
जख़्मो के उस ख़ौफ़ को, हरदम उसने ही भगाया
जब कभी मैं घबराया, जब कभी मैं कतराया
हौसला हिम्मत जुनून, हरदम उसने ही बढ़ाया
वैसे तो मैं कहता आया, अल्फ़ाज मेरे सब ज़ाविदाँ है
सब यारो से बढ़कर यार, दोस्त साड्डा अलहदा है ।
रूह क्या है ? अक्सर दिल को बतलाता है वो
हर पल नया कुछ बेहतर, सिखलाता है वो
जब कभी मैं मात खाया, जब कभी मैं लात खाया
हाँ इक मुझमें ‘राॅक’ होने का, यक़ीं दिलवाता है वो
वैसे तो मैं सुनता आया, लफ़्ज़ मेरे सब ज़ाविदाँ है
सब लफ़्ज़ो से बढ़कर लफ़्ज़, दोस्त साड्डा अलहदा है ।।
#RockShayar Irfan Ali Khan
कई दिन हो गए है तुझसे मिले हुए
अब तो ख़याल में भी नहीं आती हो
जैसे कोई तिलिस्मी बंदिश लगा रखी हो
इससे बड़ी सज़ा क्या होगी आख़िर
कि तुम्हें सोचना तो चाहता हूँ
मगर सोच नहीं पाता हूँ
खुद को हर शब ख़्वाब में
फिर उसी जगह पाता हूँ
मिले थे जहाँ कभी हम आख़िरी बार
और अब आलम ये है कि
वो ख़्वाब तक नहीं आते है
चाहे जितनी भी कोशिश मैं करू
तुम्हारे लिए आसां है शायद, भुलाना मुझे
मगर मेरी तो हर साँस में
तुम ही तुम बसी हो
पता नहीं ये क्या है ? मगर जो भी है यही है
पता नहीं ये क्यूँ है ? मगर जो भी है यही है
इतना जरूर पता है, ये जो भी है बेवजह नहीं है
कई दिनों से छुपा रखा था मैंने इसे
मगर कल जब वो बारिश हुई
तभी कहीं सीने की क़ैद से फिसलकर
वो एहसास चुपके चुपके से
कागज़ की कश्ती पर सवार हो गया
ताज्जुब इस बात का नही
कि तुम्हें इसकी खबर नही
ताज्जुब इस बात का है
कि दिल को इसकी खबर होते हुए भी
ये दावा करता रहा
कई दिनों तक बेखबर होने का
इसे क्या पता ?
तुम्हारा मेरा और बारिश का रिश्ता क्या है ?
गर पता होता तो ये सवाल ना आता
इसकी जगह कुछ अश्क़ छलक आते
लरजते दामन में जिनके
नज़र आती फिर
अधूरी वो गुज़ारिश मेरी
कई दिन हो गए है तुझसे मिले हुए
अब तो ख़याल में भी नहीं आती हो ।।
#RockShayar
पसंदीदा है डिश मेरी, खुशबू जिसकी हैरतअंगेजी
जयपुर की लज़्ज़त ये, नाम जिसका चिकनचंगेजी
रामगंज में अज़ीमो शान, अली चिकन की दुकान
नॉनवेज में रेप्यूटेशन ऐसी, बॉलीवुड में जैसे खान
तैयार किया जाता तभी, खाये इसे आप जब भी
खाते जाओ खाते जाओ, बस कहे ये पेट तब भी
साथ में हो जुगलबंदी अगर, टिक्के और फ्राई की
दास्तां सुनाये खुद वो फिर, तंदूर और कढ़ाई की
बाद इसके फिर चिल्ड एक, पेप्सी तो बनती है
साथ इसके फिर ग्रिल्ड एक, सेल्फी तो बनती है
लाजवाब है एक डिश, खुशबू जिसकी हैरतअंगेजी
जयपुर की लज़्ज़त ये, नाम जिसका चिकनचंगेजी ।।
Copyright © 2015 RockShayar Irfan Ali Khan
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जाने किसी अपने की याद दिलाता है चेहरा तेरा
मुझको हसीं सपने सा पास बुलाता है चेहरा तेरा
बिन देखे तुझको, अब चैन कहाँ, क़रार कहाँ ?
मुझको मेरा माज़ी याद दिलाता है चेहरा तेरा
सोचू जब भी तुम्हें, नींद की भी नींद उड़ जाये
जागते सोते ख़्वाब नये दिखलाता है चेहरा तेरा
दर्द के आगोश में, मुस्कुराना तक भूल बैठे
चेहरे पर मुस्कुराहटें हज़ार लाता है चेहरा तेरा
तारीफ़ ना कोई ‘इरफ़ान’, इश्क़ है यूँही तुमसे
ज़िंदगी मुझको जीना सिखलाता है चेहरा तेरा ।।
दर्द को सीने में कसरत से बढ़ाता चला गया
मैं ज़िंदगी की ओट में ज़िंदगी छुपाता चला गया
सफ़र ये तन्हा मिला नहीं जिसका कोई गिला
हमसफ़र राहों का फिर साथ निभाता चला गया
यूँही नहीं कहता हूँ मैं डायरी को जान अपनी
पन्नो पर सपने अधूरे ख़्वाब सजाता चला गया
कभी लगे जो ग़म की तहरीर हर नज़्म यहाँ
कभी नज़्म में अपने हर ग़म भुलाता चला गया
ग़ज़ल लिखने की कोशिश में यूँही ‘इरफ़ान’
लिखकर कागज़ पर एहसास मिटाता चला गया ।।
याद है वो मेरी छोटी सी डायरी
रखता था मैं जिसे हर घङी
जेब में यूँ सम्भालकर
के ज्योंही कोई ख़याल आये
झट से उतार दिया करता था
हाँ वही नन्ही सी मासूम डायरी
जो बारिश में भीगकर
गीली हो गई थी इक रोज
नज़ला रहा था हफ्तेभर तक जिसे
और नज़्म लिखते लिखते जिस पर
सो गया था मैं इक रोज यूँही
मेरी ज्यादातर नज़्मो की
पैदाइश भी तो वही हुई थी
हाँ वही डायरी
जगह नहीं बची है अब उसमें
पूरी तरह भर चुकी है
शुरुआत की ज्यादातर नज़्मे
जो कि पेंसिल से लिखी थी मैंने
चाहू तो मिटाकर उनकी जगह
फिर से कुछ नया लिख सकता हूँ
मगर एक शायर का दिल
ये इजाज़त नही देता है
कि पुराने ख़याल को शहीद किया जाये
किसी नये ख़याल की खातिर
कुछ भी कहो मगर
सोहबत में उसकी एक अलग ही सुकूं था
आज भले ही मेरे पास
कई बङी बङी और नक्काशीदार डायरियाँ है
मगर वो जो ख़याल में
शिद्दत उभर कर आती थी उस डायरी में
वो अब कहीं नज़र नही आती है
शायद डायरी के साथ साथ वो भी भर गई है
हाँ आज तो बस इक नज़्म बनकर रह गई है
वो मेरी छोटी सी डायरी ।।
डगर कोई दिखलाओ या रब
हुनर कोई सिखलाओ या रब
भटक रहा हूँ वीरानो में
शज़र कोई दिखलाओ या रब
अधकचरे है क़रम हमारे
भरम सभी झुठलाओ या रब
बेघर सा है मन का मक़ां
कौन हूँ मैं बतलाओ या रब
सफ़र तन्हा परेशां हूँ मैं
मुझसे ना झुंझलाओ या रब
ज़िंदा नही है ज़िंदगी ये
जीना मुझे सिखलाओ या रब
लापता हूँ कब से ‘इरफ़ान’
पता मुझको बतलाओ या रब ।।
तेरे साथ साथ हमने वो तेरे ख़याल भी मिटाए है
लहू से लिखे थे ख़त जो एक एक करके जलाए है
राख़ में कायम है अब तक फिर भी क्यूँ खुशबू तेरी
दिल ने दिल से धीरे धीरे निशां वो सब मिटाए है ।।
दावत-ए-खास, कुछ और ही खास हो गई
ख़याल में थी वो, दूर होकर भी पास हो गई ।।
कई दिनों से कुछ अच्छा नहीं लिख पा रहा हूँ
शायद जिस्म के किसी अंदरूनी हिस्से में कहीं
कोई मेन लाइन शाॅर्ट सर्किट हो गई है
हाँ वही सतरंगी फ्लेट रिबन केबल
जो दिल से होकर ज़ेहन को जाती है
फाॅल्ट्स फाइंड करते करते यूँ आख़िर
खुद माइंड का फाॅन्ट ही चेंज हो गया
ख़याल बोल्ड से कब इटालिक हो गए
पता ही नही चला इसको
सर्च ऑपरेशन के दौरान
एहसास के कुछ बर्नड पुर्ज़े मिले है
और उन्ही की मदद से
फिर से एक नया यूनीक सिस्टम
तैयार करने की ज़िद लिए बैठा हूँ
यक़ीनन राइटर से बनने से पहले
मैं एक इंजीनियर हुआ करता था ।।
तुझ में और तेरे लक्ष्य में उतना ही फ़ासला है
मन ये तेरा किसी और का होने को उतावला है
त्याग तप अनुशासन स्वयं पर तू कर शासन
कठोर लगे है आँगन अनंग पर तू कर आसन
नित नई खोज कर जीवन भर फिर मौज़ कर
विचारों की आभा से मुख मंडल पर ओज भर
स्मृति के सुदृढ़ गागर में रोप कोई बीज नया
अनुभूति के सागर में तलाश कोई द्वीप नया
तुझ में और तेरे लक्ष्य में उतना ही फ़ासला है
मन ये तेरा किसी और का होने को उतावला है ।।
ख़्वाहिशों के कच्चे पक्के आँगन में
बिखरे है ज़िंदगी के कुछ बासी पल
कदम रखना तू जरा अपने सम्भल के
मिलेंगे हर कदम पर यहाँ धोखे कई
ख़्वाहिशों के कच्चे पक्के आँगन में
बिखरे है ज़िंदगी के कुछ बासी पल
संभाल के रखना जरा सपने धुंधलके…
ग़फ़लत में ना रहना मान मेरा ये कहना
लिख कभी तो ख़याल रूहानी सा हो के
तुझमें ही बसा है तू तुझमें ही छुपा है तू
सुन ले ना रे कभी यूँ दिल पे हाथ रख के
ख़्वाहिशों के कच्चे पक्के आँगन में
बिखरे है ज़िंदगी के कुछ बासी पल
संभाल के रखना जरा सपने धुंधलके…
दो पल की ज़िंदगी में बस याद इतना रखना
पाया जो तूने खुद को फिर खुद को मिटा के
सच कहता है दिल सच बोलता है दिल
महसूस कर ले कभी यूँ इसको आज़मा के
ख़्वाहिशों के कच्चे पक्के आँगन में
बिखरे है ज़िंदगी के पल आज कल
ख़्वाहिशों के कच्चे पक्के आँगन में
बिखरे है ज़िंदगी के कुछ बासी पल
संभाल के रखना जरा पासे बदल के
संभाल के रखना जरा सपने धुंधलके ।।
बेतहाशा चाहता हूँ मैं, तुझको ऐ ज़िंदगी
और तू है कि मौत की, ज़िद लिए बैठी है ।।
सुर्ख़ था इस क़दर वो रौग़न जोश
देखकर उसे लहू में आ गया जोश ।।
बदलने वालों की किस्मत, तब ही बदलती है
धङाम से गिर के वो, जब खुद ही सम्भलती है ।।
बेमानी रिश्तों के बदलते मानी मत पूछो
मोहब्बत क्यूँ है तुमसे ये कहानी मत पूछो
तफ़्तीश कर लो चाहे जिस्म से रूह तक
फ़क़त मुझमें मेरे होने की निशानी मत पूछो
लहरों के संग संग लहराओ तुम भी कभी
हाँ लहरों से खुद लहरों की रवानी मत पूछो
दर्द उठता है सीने में तब कैसा लगता है ?
महसूस कर लो इसे तुम ज़बानी मत पूछो
खुली किताब हूँ मैं जो चाहे पन्ना पलट लो
हाँ इक मुझसे मेरी गुज़री कहानी मत पूछो ।।
->-> RockShayar I. A. Khan <-<-
वाक़िफ़ ना रहा जो खुद से कभी
वाक़िआ बनने को है खुद वो अभी ।।
वाक़िफ़ – परिचित
वाक़िआ – घटना
मेनस्ट्रीम से नियरलेस, एक्सट्रीम हूँ केयरलेस
आज़मा लो चाहे जितना, बंदा हूँ मैं इमोशनलेस
सटकने वालों की खुपङिया, तब ही सटकती है
जचा के ज़िन्दगी उन्हें, जब औंधे मुँह पटकती है
मर मर के यूँही जीना, डर डर के डर को पीना
आसां नही है इतना हाँ, सीखा है खुद से जीना
नौसिखिया जिद्दी सनकी, कहो चाहे फियरलेस
आज़मा लो चाहे जितना, बंदा हूँ मैं इमोशनलेस
बदलने वालों की किस्मत, तब ही बदलती है
धङाम से गिर के वो, जब खुद ही सम्भलती है
दर्द के दर पे राॅक करू, हर ग़म को शाॅक करू
हर दिन खुद्दारी से, खुद ही खुद को शाॅक करू
ख़्वाबों ख़्वाहिशों की, उङाऊ गड्डी गियरलेस
समझा लो चाहे जितना, बंदा हूँ मैं इमोशनलेस
मेनस्ट्रीम से नियरलेस, एक्सट्रीम हूँ केयरलेस
आज़मा लो चाहे जितना, बंदा हूँ मैं इमोशनलेस ।।
बाहों में भर लो जी भर कर आज
तोङ दो ये सब रस्म-ओ-रिवाज
तुम तुम ना रहो मैं मैं ना रहू फिर
और भूल बैठे हम सब कामकाज ।।