चलते-चलते इतनी दूर आ गये क़दम
के लौटना जहाँ से नामुमकिन है अब।
वैसे भी क़दमों को रुकने की आदत कहाँ
ये तो वहीँ चले जाये, रास्ते ले जाये जहाँ।
जहाँ रास्तेभर रास्तों का सफ़र हो
और मंज़िल से दिल ये बेख़बर हो।
चलते-चलते इतनी दूर आ गये हैं हम
के लौटना जहाँ से नामुमकिन है अब।
वैसे भी हमको अब लौटने की चाहत कहाँ
हम तो वहीँ बस जाये, ज़िंदगी रहती जहाँ।
जहाँ ज़िंदगीभर ज़िंदगी बस एक सफ़र हो
फिर चाहे सामने मौत हो या मंज़िल, ना कोई डर हो।
चलते-चलते इतनी दूर आ गये क़दम
के लौटना जहाँ से नामुमकिन है अब।।
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