अलसुबह गीले गीले छपाको से
एक शोख़ नदी ने भिगोया मुझे
जिस तरह जा रही थी वो
जिस तरह गा रही थी वो
हौले हौले मुझको तो बस
कुछ इस तरह भा रही थी वो
कि जैसे कोई प्यासा
सहरा में भटक रहा हो
बरसो से
कई अरसो से
और अब जाकर
मिला हो उसे
रौशनी का दरिया
जीने का ज़रिया
जन्नत से आई परियां
बरसती हुई बदरिया
मचलती हुई डगरिया
थोङा ही कहीं
हाँ बदला तो सही
ज़िंदगी का नज़रिया
कुछ ऐसा जो तर कर दे
जिस्म से लेकर रूह तक
कुछ ऐसा जो घर कर ले
जुनून से लेकर सुकूं तक
अलसुबह गीले गीले छपाको से
एक शोख़ नदी ने भिगोया मुझे ।।
#TheRockShayar